मोदी सरकार गरीब हितैषी है या कॉरपोरेट हितैषी?

मोदी सरकार गरीब हितैषी है या कॉरपोरेट हितैषी?



कभी नरेंद्र मोदी सरकार पर सूट-बूट की सरकार होने के आरोप लगते थे और आज उसकी नीतियों को सनातन समाजवाद का नाम दिया जा रहा है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने संबोधन में कहा कि वेल्थ क्रिएटर्स राष्ट के सम्मान के हकदार हैं और उन्हें संदेह की नजरों से नहीं देखा जाना चाहिए. अब, थोड़ा पीछे लौटें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण को याद करें जो उन्होंने पार्टी कार्यालय में तब दिया था जब भाजपा भारी बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में लौटी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि आने वाले समय में भारत में दो ही जातियां होंगी. एक गरीब और दूसरी गरीबी हटाने में कुछ न कुछ योगदान करने वालों की. तब यह माना गया कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में आर्थिक नीतियों का रूख गरीब समर्थक होने वाला है. सरकार बनने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जिस तरह का बजट लेकर आईं और उसे जिस तरह से सूटकेस के बजाय लाल कपड़े में पेश किया गया, उसने इस धारणा को और पुख्ता कर दिया. बजट में सुपर रिच टैक्स जैसे ऐसे प्रावधान किए गए. जिनका सियासी और आर्थिक संदेश यह माना गया कि नरेंद्र मोदी सरकार अमीरों से कर वसूल कर उसे लोक-कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च करेगी. बजट के बाद उदारीकृत अर्थव्यवस्था के जानकार इस कदर उदास थे कि तमाम लेखों में कहा गया कि मोदी सरकार ने इंदिरा गांधी के दौर के गरीबी हटाओ वाले समाजवाद का रास्ता पकड़ लिया है. बजट के बाद के कुछ लेखों में तो प्रधानमंत्री को कॉमरेड मोदी तक कहा गया। लेकिन, लाल किले की प्राचीर से पीएम ने जब वेल्थ क्रिएटर्स का सम्मान करने की बात दोहराई तो ये सारे विश्लेषण शीर्षासन करते नजर आए. इस भाषण का यह निहितार्थ निकाला जाने लगा कि सरकार इसके जरिये उद्योग और व्यवसाय के लिए सकारात्मक नीतियों का संकेत दे रही है. चचाओं का रुख इस तरह से बदल देने और उन्हें राजनीतिक रूप से अनुकूल बना लेने में मोदी सरकार को महारत है. लेकिन, वह अब अपना एक कार्यकाल पूरा कर चुकी है और दूसरे का आगाज कर चुकी है. ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार का रुख लोक-कल्याणकारी रहा है या आर्थिक सुधारों और कॉरपोरेट जगत को गति देने वाला. अगर नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से बात शुरू की जाए तो कांग्रेस की ओर से भाजपा सरकार के विरोध के लिए जो पहला सशक्त सियासी जुमला इस्तेमाल हुआ वह था। राहुल गांधी ने मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार कहकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वह गरीब विरोधी और उद्योगपतियों के हितों को साधने वाली सरकार है. धीरे-धीरे संपूर्ण विपक्ष ने भी विरोध की यही लाइन पकड़ी और थोड़ा आगे बढ़कर मोदी सरकार पर अंबानी-अडानी की सरकार होने का आरोप लगना शुरू हो गया।